कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बारे में आपने अक्सर सुना होगा कि ये पक्ष अच्छा है इसमें ये काम करना चाहिए और ये पक्ष ठीक नहीं है इसमें ये काम नहीं करना चाहिए। इस तरह की चर्चा होते हुए अक्सर आपने सुना होगा। तो चलिए जानते हैं कि ये पक्ष क्या है और कौन से पक्ष में कौन से कार्य करने चाहिए।
हिन्दू पंचांग अथवा हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ही कई सारे त्यौहारों और खास आयोजन की तिथियां निकाली जाती है। हिन्दू कैलेंडर में वर्ष और महीनों की गणना सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर की जाती है। इसके 1 साल में 12 महीने होते हैं और प्रत्येक महीना 30 दिनों का होता है। इन 30 दिनों को दो पक्षों में बांटा गया है, जिन्हे कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहते हैं जो 15-15 दिनों के होते हैं।
कृष्ण पक्ष
कृष्ण पक्ष वह समय होता है जब चंद्रमा का आकार घटता है। यह पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र) से शुरू होकर अमावस्या (अमावस, यानी चंद्रमा के अदृश्य होने) तक चलता है। यह लगभग 15 दिनों का होता है, जिसमें चंद्रमा हर दिन थोड़ा-थोड़ा क्षीण (कम) होता जाता है। कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या होता है, जिसे कई स्थानों पर धार्मिक रूप से विशेष मान्यता प्राप्त है।
अमावस्या को कई धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जैसे पितृ-तर्पण और श्राद्ध कर्म। यह तिथि पूर्वजों को सम्मान देने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। कुछ लोग कृष्ण पक्ष को अशुभ मानते हैं, विशेषकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए, लेकिन कुछ विशेष कार्यों, जैसे कि तंत्र-मंत्र साधना, के लिए इसे अनुकूल माना जाता है। कृष्ण पक्ष में कई व्रत और पूजा भी होते हैं, जैसे कि एकादशी, प्रदोष व्रत, और काल भैरव अष्टमी।
हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा के बाद यानी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही नए महीने की शुरुआत होती है।
शुक्ल पक्ष
शुक्ल पक्ष वह समय होता है जब चंद्रमा का आकार बढ़ता है। यह अमावस्या (जब चंद्रमा अदृश्य होता है) के अगले दिन से शुरू होकर पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र) तक चलता है। यह भी लगभग 15 दिनों का होता है, जिसमें चंद्रमा हर दिन थोड़ा-थोड़ा पूर्ण (बड़ा) होता जाता है। शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा होता है, जिस दिन चंद्रमा पूर्ण आकार में दिखाई देता है और इस दिन कई प्रमुख त्योहार भी मनाए जाते हैं।
शुक्ल पक्ष को विशेष रूप से शुभ माना जाता है, और इस दौरान कई धार्मिक कार्यों, जैसे कि पूजा-पाठ, गृह प्रवेश, विवाह, यज्ञ, और नए कार्यों की शुरुआत के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस पक्ष में कई प्रमुख त्योहार और व्रत आते हैं, जो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं जैसे शरद पूर्णिमा,गणेश चतुर्थी,बसंत पंचमी,रक्षाबंधन आदि।
तिथियों के नाम
पूर्णिमा से अमावस्या औरअमावस्या से पूर्णिमा तक बीच के जो दिन होते हैं उनके नाम इस प्रकार हैं।
- पूर्णिमा (पूरनमासी),
- प्रतिपदा (पड़वा),
- द्वितीया (दूज),
- तृतीया (तीज),
- चतुर्थी (चौथ),
- पंचमी (पंचमी),
- षष्ठी (छठ),
- सप्तमी (सातम),
- अष्टमी (आठम),
- नवमी (नौमी),
- दशमी (दसम),
- एकादशी (ग्यारस),
- द्वादशी (बारस),
- त्रयोदशी (तेरस),
- चतुर्दशी (चौदस) और
- अमावस्या (अमावस)।
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के साथ, हिंदू धर्म और संस्कृति में चंद्रमा का विशेष स्थान है। यह दो पक्ष मिलकर एक चंद्र मास बनाते हैं और इसके अनुसार पंचांग और धार्मिक गतिविधियाँ तय होती हैं। इन पक्षों के अनुसार ही व्रत, त्योहार, और विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिनका भारतीय जीवन में अत्यधिक महत्व है।